रंजना भाटिया जी द्वारा मेरी किताब की समीक्षा



रंजना भाटिया 
दो दिन पहले नित्‍यानंद गायेन की किताब अपने हिस्से का प्रेम मिली ..रविवार का दिन उसी को पढ़ते हुए गया ..पढ़ते पढ़ते एक अजीब सा एहसास हुआ कि हिंदी कविता की कमांड अब युवा वर्ग के हाथ में महफूज है ....देश की फ़िक्र ,समाज की फ़िक्र ,और आज के समाज की वास्तविकता की तस्वीर है इस काव्य संग्रह में ..अपने पर्यावरण के प्रति लगाव और चिंता आपकी पहली दूसरी कविता में ही व्यक्त हो जाती है ..सीखना चाहता हूँ मित्रता /पालतू पशुओं से/क्यों कि वे स्वार्थ के लिए कभी धोखा नहीं देते |.कितना बड़ा सच है इन पंक्तियों में जो आज की राजनिति और आज के वक़्त को ब्यान करता है|हाथी सिर्फ आगे चित्रों में दिखेगा क्यों कि जंगल ही नहीं बचेंगे आने वाले वक़्त में ..डरा देता है यह मासूम सी कविता का सवाल ..और यह तो और भयवाह है कि बाजार से लायेंगे साँसे और हवा बिकेगी बाजार में ...आने वाले वक़्त की तस्वीर आँखों में डर पैदा कर देती है ..साथ ही यह एहसास भी करवाती है कि आज का युवा सजग है तो शायद कहीं कुछ हालात में सुधार संभव हैं ..
समाज किसी भी युग का आईना होता है ..और उस पर लिखे जाना वाला साहित्य उसकी परछाई ....आज के हालात पर जब कवि लिखता है कि खाली कैनवास पर उदास चेहरा ..किसका है तो एक आम आदमी की परछाई ही आँखों में आती है और सिर्फ काम ही करता है अब इन्सान वो भी सिर्फ पैसों के लिए जहाँ वह आज़ाद देश का गुलाम नजर आता है |इसी श्रंखला में जिस कविता ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया वह थी योद्धा .वीर रस पर कविता ...के प्रश्न पर गरीब इस देश का वीर योद्धा है ..भूख से लड़ता ..अन्याय से लड़ता और अंत में अपने आप से लड़ता हुआ समाप्त हो जाता है ..यही शब्द पढ़ते हुए मन निशब्द हो जाता है | अनाज के गोदाम भरे पड़े हैं फिर भी गरीन भूख से मर रहा है .यह संवेदना रोज़ अखबार में पढ़ी जाने वाली खबर से रूबरू करवाती है .|
इसी संग्रह में तीसरा अंक हम प्रेम के नाम समप्रित पाते हैं ...इन पर लिखी रचनाओं ने दिल में पढ़ते हुए एक अजब से दर्द का एहसास करवाया ..आखिर दर्द महसूस हो भी क्यों न ..क्यों कि जहाँ प्रेम है वहां दर्द भी है तुम भी दूरी नापती होगी कभी कभी अकेले में जो आ गयी है रिश्तों के दरमियान ..सच है यह .इंसान कहाँ सब भूल पाता है ..सिर्फ कहता भर ही है .पर जब जब बिजली चमकेगी ,बारिश होगी तो खुद को खो दूंगा तुम्हारी यादो में ..खोया था एक दिन कविता इसी एहसास से रूबरू करवाती है |डायरी ,नजरों से पहले ,सूखा पत्ता ,आदि रचनाये दर्द और प्रेम का सुन्दर रूप हैं |
पहले संग्रह के हिसाब से बहुत अच्छा संग्रह माना जा सकता है यह और युवा कवि की कल्पनाओं का संसार विस्तृत होने की उम्मीद दर्शाता है | कहीं कहीं कुछ रचनाये बहुत बोझिल और अपनी बात को बढ़ाते हुए भी कहती हुई प्रतीत हुई हैं पर वह बहुत कम संख्या में है |जब भी कोई काव्य संग्रह पढा जाता है तो हर रचना अपने मूड के हिसाब से हम पढ़ते हैं शायद तभी वह बोझिल सी प्रतीत होती हैं | मुख्य पृष्ठ आकर्षण है और शब्दों का चुनाव सरल | अभी यह इस युवा कवि की शुरुआत है ..आगे बहुत सी उम्मीदे बन्ध जाती है इस तरह लिखने वाले युवा कवि से ..अपने हिस्से का प्रेम नाम ने मुझे बहुत आकर्षित किया है ..आगे और लिखने के लिए शुभकामनाएं.

Comments

Popular posts from this blog

तालाब में चुनाव (लघुकथा)

मुर्दों को इंसाफ़ कहाँ मिलता है