तुम भी बेचैन हो शायद

हर बार खोलता हूँ द्वार 
कि , हो जाये तुम्हारा दीदार 
काले मेघों का जमघट 
हटा नही अभी 
तुम भी बेचैन हो शायद 
ओ  चाँद ....

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